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2016
  • सिंहस्थ महाकुम्भ उज्जैन 2016

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    समाज के हर तबके को सिद्ध बनाना होगा दिनाँक 01.05.16. उज्जैन। जब तक हम विद्यार्थियों के साथ-साथ समाज के हर तबके को सिद्ध नहीं बनाएंगे, विश्व चेतना में ज्ञान का प्रकाश नहीं फैला सकते। महाकुंभ में बड़नगर रोड पर स्थित महर्षि शिविर में यह बात परम् पूज्य महर्षि महेश योगी जी के सिद्धि निर्माण कार्यक्रम की डीवीडी के माध्यम से उपस्थित जनमानस को सुनाई गई। महर्षि जी ने कहा था कि वेद शास्त्र एक हैं, मर्यादाएं सदा वहीं हैं, ज्ञान वही है, आत्माएं वहीं हैं, फिर युग क्यों अलग-अलग हो जाते हैं। यह सब काल के प्रभाव से संभव होता है। भारत सिद्धों का देश है, सिंहस्थ महाकुंभ में अनेकों सिद्ध आत्माएं आती हैं। देश के हर कोने में सिद्ध बाबा के स्थान हैं इससे साबित होता है कि भारत में सिद्धि का चलन एवं प्रभाव पहले से ही देखा गया है। जो सिद्धियां हैं उसे योग की विभूतियां कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा था मेरी विभूतियों का दर्शन करो। संयम ध्यान की चेतना है। जब तीन चेतनाएं-धारणा-ध्यान और समाधि एक हो जाती हैं सिद्धि प्राप्त हो जाती है। जब तक समाधि कठिन थी, संयम कठिन था, तब तक धारणा कठिन थी, ध्यान कठिन था, जब तक भावातीत ध्यान का अभ्यास नहीं किया था सब कठिन था। भावातीत ध्यान के माध्यम से भाव की सूक्ष्मता के साथ इस कार्य को सरल किया जा सकता है। मन आत्मरूप होना चाहता है, इसलिए मन चंचल हो इधर-उधर भटकता रहता है। भावातीत ध्यान से भाव की सूक्ष्मता होते-होते समाधि की ओर जाते हैं। इसके बाद संयम का रूवरूप बनता है। समाधि की सत्ता चित्त आनंद की सत्ता है। संयम के द्वारा ही क्रिया का उचित फल मिल पाता है। भावातीत ध्यान से ध्यान-धारणा एवं समाधि का आसानी से संगम हो जाता है। अपने उद्बोधन में योगाचार्य श्री चितरंजन सोनी ने कहा कि योग नित्य अभ्यास करने वाली विद्या है। सुनने एवं देखने से उसका प्रभाव नहीं होता। मनुष्य विकृतियों में न उलझा रह जाए इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने योग का संदेश दिया है। परम् पूज्य महर्षि जी ने भी योग की अनेक युक्तियां बताई हैं, जो महर्षि शिविर में उपलब्ध पुस्तकों में वर्णित है। ज्योतिष के अंर्तराष्ट्रीय स्तर के विद्वान पं. विजय द्विवेदी ने अपने उद्बोधन में शिशु के नामकरण में 27 नक्षत्रों के प्रभाव के बारे में बताया। इसके साथ ही उन्होंने श्री राम रक्षा स्तोत्र एवं श्री गणेश स्तुति प्रस्तुत की जो कल सोमवार से प्रारंभ होने वाले श्री राम कथामृत प्रवाह की घोषणा स्वरूप है। श्री राम कथामृत प्रवाह 2 से 8 मई तक महर्षि शिविर के दिव्य प्रांगण में श्री वृन्दावन धाम के संत शिरोमणी श्री श्री 1008 श्री राम जी बाबा 'कोकिल' द्वारा किया जावेगा। ब्रह्मचारी गिरीश जी ने सिंहस्थ की बढ़ती हुई आध्यात्मिकता की प्रशंसा की और संतोष व्यक्त किया। शिविर में प्रतिदिन रूद्राभिषेक महायज्ञ हो रहा है। रामराजटीवी डाॅट काॅम आॅनलाइन पर रूद्राभिषेक महायज्ञ का सीधा प्रसारण किया जा रहा है। साथ ही प्रतिदिन प्रातः 12 बजे तक ज्योतिष, महर्षि स्वास्थ्य पद्धति, योगासन एवं भावातीत ध्यान पर परामर्श उपलब्ध है। सभी श्रद्धालुगणों से इन परामर्शों का लाभ उठाने का अनुरोध है।
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    सोच ही बनाती है किसी को राम किसी को रावणः श्री राम जी बाबा 'कोकिल' दिनाँक 03.05.16. उज्जैन। अच्छे विचार मनुष्य को अच्छा और बुरे विचार बुरा बनाते हैं, यही कारण था कि अच्छी सोच के कारण भगवान श्रीराम मर्यादा पुरूषोतम कहलाए, वहीं बुरी सोच के कारण पंडित कुल का होकर भी रावण बुरा कहलाया। यह बात आज महर्षि शिविर में श्रीराम कथा प्रवाह के द्वितीय दिन संत शिरोमणी श्री श्री 1008 श्री राम जी बाबा कोकिल ने कही। शिविर में उपस्थित लोगों से अनुरोध करते हुए उन्होंने कहा कि अच्छे लोगों की संगत करना चाहिए। भगवान शंकर एवं सती के प्रसंग से बताया कि एक बार भगवान शिव की बात सती ने नहीं मानी जिसके चलते भगवान शंकर को सती का परित्याग करना पड़ा। भगवान शिव की कृपा के बिन श्रीराम कथा अधूरी है। महाकाल की नगरी में राम कथा का यह अमृत प्रवाह बड़ा पावन है। यह सृष्टि शिव के नाम की तरह की दो अक्षरों में बसी है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन दो अक्षरों के आधार पर ही वर्ष 1631 में प्रारंभ कर 2 साल 7 माह 6 दिन में श्री रामचरित्र मानस ग्रंथ की रचना कर दी। आप देख भी सकते हैं कि सृष्टि की कई वस्तुएं दो नाम से ही बनी हैं जैसे शरीर और पेड़ के अंगों के नाम। तुलसीदास जी राम कथा में इसलिए हमेशा दो कथाओं को कहते हैं। श्रीराम कथा के पूर्व शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग सुनाया गया। कथाव्यास श्री राम जी बाबा ने बताया कि भगवान शिव का विवाह इस लिए सफल हुआ क्योंकि इस विवाह के मध्यस्थ सप्तऋषि थे। इसलिए संतों की सलाह के बगैर कोई कार्य नहीं करना चाहिए। राम कथा को मन लगाकर सुनने से ही आनंद की अनुभूति होती है। कथा के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुगणों ने श्रीराम कथा श्रवण कर पुण्य लाभ प्राप्त किया। कल कथा व्यास जी श्रीराम जन्म का प्रसंग वाचन करेंगे। शिविर में चल रहे महारूद्राभिषेक यज्ञ के अंतर्गत हर दिन वैदिक पंडितों द्वारा 1 लाख आहुतियां डाली जा रहीं हैं। आज ब्रह्मचारी गिरीश जी द्वारा यज्ञ में शामिल होकर आहुति डाली गई। ब्रम्हचारी जी ने सिंहस्थ के दौरान चल रहे इस महायज्ञ को फलदायी बताया। सायं भजन संध्या में दिल्ली से आए विश्वविख्यात रामायणी एवं भजन गायक पंडित लक्ष्मीकांत काण्डवाल ने श्री रामचरित मानस की संगीतमय प्रस्तुति से उपस्थित भक्तजनों को श्रीराम के गुणों के रस से प्रसन्नचित्त कर दिया। शिविर से प्रतिदिन रामराजटीवी डाॅट काॅम आॅनलाइन पर महारूद्राभिषेक यज्ञ एवं श्रीराम कथा प्रवाह का सीधा प्रसारण किया जा रहा है। साथ ही प्रतिदिन प्रातः 12 बजे तक ज्योतिष, महर्षि स्वास्थ्य पद्धति,योगासन एवं भावातीत ध्यान पर परामर्श उपलब्ध है। सभी श्रद्धालुगणों से इन परामर्शों के साथ-साथ श्रीराम कथा प्रवाह का लाभ उठाने का अनुरोध है।
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    सोच ही बनाती है किसी को राम किसी को रावणः श्री राम जी बाबा 'कोकिल' दिनाँक 03.05.16. उज्जैन। अच्छे विचार मनुष्य को अच्छा और बुरे विचार बुरा बनाते हैं, यही कारण था कि अच्छी सोच के कारण भगवान श्रीराम मर्यादा पुरूषोतम कहलाए, वहीं बुरी सोच के कारण पंडित कुल का होकर भी रावण बुरा कहलाया। यह बात आज महर्षि शिविर में श्रीराम कथा प्रवाह के द्वितीय दिन संत शिरोमणी श्री श्री 1008 श्री राम जी बाबा कोकिल ने कही। शिविर में उपस्थित लोगों से अनुरोध करते हुए उन्होंने कहा कि अच्छे लोगों की संगत करना चाहिए। भगवान शंकर एवं सती के प्रसंग से बताया कि एक बार भगवान शिव की बात सती ने नहीं मानी जिसके चलते भगवान शंकर को सती का परित्याग करना पड़ा। भगवान शिव की कृपा के बिन श्रीराम कथा अधूरी है। महाकाल की नगरी में राम कथा का यह अमृत प्रवाह बड़ा पावन है। यह सृष्टि शिव के नाम की तरह की दो अक्षरों में बसी है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन दो अक्षरों के आधार पर ही वर्ष 1631 में प्रारंभ कर 2 साल 7 माह 6 दिन में श्री रामचरित्र मानस ग्रंथ की रचना कर दी। आप देख भी सकते हैं कि सृष्टि की कई वस्तुएं दो नाम से ही बनी हैं जैसे शरीर और पेड़ के अंगों के नाम। तुलसीदास जी राम कथा में इसलिए हमेशा दो कथाओं को कहते हैं। श्रीराम कथा के पूर्व शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग सुनाया गया। कथाव्यास श्री राम जी बाबा ने बताया कि भगवान शिव का विवाह इस लिए सफल हुआ क्योंकि इस विवाह के मध्यस्थ सप्तऋषि थे। इसलिए संतों की सलाह के बगैर कोई कार्य नहीं करना चाहिए। राम कथा को मन लगाकर सुनने से ही आनंद की अनुभूति होती है। कथा के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुगणों ने श्रीराम कथा श्रवण कर पुण्य लाभ प्राप्त किया। कल कथा व्यास जी श्रीराम जन्म का प्रसंग वाचन करेंगे। शिविर में चल रहे महारूद्राभिषेक यज्ञ के अंतर्गत हर दिन वैदिक पंडितों द्वारा 1 लाख आहुतियां डाली जा रहीं हैं। आज ब्रह्मचारी गिरीश जी द्वारा यज्ञ में शामिल होकर आहुति डाली गई। ब्रम्हचारी जी ने सिंहस्थ के दौरान चल रहे इस महायज्ञ को फलदायी बताया। सायं भजन संध्या में दिल्ली से आए विश्वविख्यात रामायणी एवं भजन गायक पंडित लक्ष्मीकांत काण्डवाल ने श्री रामचरित मानस की संगीतमय प्रस्तुति से उपस्थित भक्तजनों को श्रीराम के गुणों के रस से प्रसन्नचित्त कर दिया। शिविर से प्रतिदिन रामराजटीवी डाॅट काॅम आॅनलाइन पर महारूद्राभिषेक यज्ञ एवं श्रीराम कथा प्रवाह का सीधा प्रसारण किया जा रहा है। साथ ही प्रतिदिन प्रातः 12 बजे तक ज्योतिष, महर्षि स्वास्थ्य पद्धति,योगासन एवं भावातीत ध्यान पर परामर्श उपलब्ध है। सभी श्रद्धालुगणों से इन परामर्शों के साथ-साथ श्रीराम कथा प्रवाह का लाभ उठाने का अनुरोध है।
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    सिंहस्थ से निकलेगा विश्व शांति के लिए अमृत:ब्रह्मचारी गिरीश जी दिनांक 04-05-2016. उज्जैन। विश्व वंदनीय, चेतना वैज्ञानिक परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी के परम शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने अगले वर्ष महर्षि जी के जन्म शताब्दी वर्ष में विश्व शांति के उद्देश्यों को और गति देने हेतु सिंहस्थ में पहुंचे विभिन्न साधु- संतों से सद्भावना भेंट कर उन्हें सम्मान प्रदान किया। उन्होंने सर्वप्रथम अनंत श्री विभूषित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज शंकराचार्य का आशीर्वाद प्राप्त किया। तत्पश्चात विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री श्री चंपत राय जी को सम्मान प्रस्तुत किया गया। देश में सुख-शांति बनी रहे एवं राष्ट्र की सामूहिक चेतना में सतो गुण वृद्धि हो, इसको लेकर विचार-मंथन किया गया। शंकराचार्य जी ने ब्रह्मचारी गिरीश जी से आव्हान किया कि वे मानवीय विकास के क्षेत्र में कार्य करें। साथ ही देश-विदेश में फैल रही अशांति को दूर करने हेतु चिंतन करें। ब्रह्मचारी गिरीश जी ने शंकराचार्य जी से निवेदन किया कि इस सिंहस्थ में अनेक साधु, संतों, महात्माओं और विद्वानों के मुखारविन्द से ज्ञान रस की गंगा बह रही है, इस पुण्य सरिता में सभी को डुबकी लगा लेनी चाहिए। महाकुंभ से संकल्प लिया जाना चाहिए कि हम प्रकृति की रक्षा करें, साथ ही मानवीय विकास के लिए वृहद योजना बनाकर वास्तविक रूप से उसे सफल बनाने हेतु सब मिलकर प्रयास करें। देश-विदेश में फैल रही अशांति को दूर करने हेतु महर्षि विश्व शांति आंदोलन तथा महर्षि आदर्श भारत अभियान को प्रारंभ कर दिया गया है तथा उन्हे और सशक्त किया जावेगा। तत्पश्चात ब्रह्मचारी जी रामघाट पहुंचकर सायंकाल क्षिप्रा तट पर ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के परम पूज्य चिदानंद महाराज जी के साथ भव्य आरती में सम्मलित हुए और उन्होंने महाकालेश्वर मंदिर में भगवान महाकाल के दर्शन किये। बड़ी संख्या में सभी श्रद्धालुगण आज हवनात्मक अतिरूद्रभिषेक हवन में अति उत्साह से उपस्थित हुए और 151 वैदिक पंडितों द्वारा किए जा रहे अतिरूद्राभिषेक पूजन तथा हवन में सम्मिलित होकर प्रसन्न हो गए। शिविर के गेट पर लगे दो हाथी आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं ऐसा प्रतीत हो रहा जैसे कि वे भगवान शिव का मां पार्वती सहित स्वागत करने को आतुर हों। श्रीराम कथा में आज संत शिरोमणी श्री श्री 1008 श्री राम जी बाबा कोकिल द्वारा भगवान शिव द्वारा मां पार्वती को सुनाई गई अमर कथा और अमरत्व का संगीतमय वाचन किया गया। साथ ही श्री राम के जन्म एवं उनके धरती पर अवतरण की कथा सुनाई गई। इस दौरान उन्होंने बताया कि अपने-अपने पुण्यों के कारण ही मनुष्य सही एवं गलत योनि को प्राप्त होता है। भगवान राम जैसी मर्यादित जीवन प्राप्ति के लिए दीन-दुखियों की सेवा करना चाहिए। श्रीराम से प्यार करने से सारी दुनिया आपके चरणों होगी। इस संसार में एक काम ऐसा करना चाहिए की आपका नाम अमर हो जाए। परम् पूज्य महर्षि महेश योगी जी के द्वारा प्रणीत भावातीत ध्यान तथा वेद के 40 क्षेत्रों पर आधारित प्रदर्शनी गणमान्य नागरिकों को काफी लुभा रही हंै। रामराजटीवी डाॅट काॅम आॅनलाइन पर श्रीराम कथा प्रवाह का सीधा प्रसारण किया जा रहा है। साथ ही प्रतिदिन प्रातः 12 बजे तक ज्योतिष, महर्षि स्वास्थ्य पद्धति, योगासन एवं भावातीत ध्यान पर परामर्श उपलब्ध है।
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    कर्म प्रधान विश्व में जो जैसा करेगा, वैसा भरेगाः आचार्य ओमप्रकाश शर्मा दिनाँक 13.05.16. उज्जैन। भगवान कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को ज्ञान का साक्षात्कार कराते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि यह विश्व कर्म प्रधान है, यहां जो जैसा करेगा, वैसा ही फल उसे मिलेगा। इसलिए हम सद्कर्म करें, हमारा उद्धार होगा। ये उद्गार आज आचार्य श्री ओमप्रकाश शर्मा ने महर्षि शिविर में श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के अंतर्गत व्यक्त किए। महर्षि शिविर में श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के दूसरे दिन बृजधाम से आए आचार्य श्री ओमप्रकाश शर्मा ने श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के अंतर्गत नारद जी का वह प्रसंग सुनाया, जिसमें वह भगवान शिव के गले में पड़ी मुण्डों की माला को लेकर देवी पार्वती के मन में उत्कंठा जागृत करते हैं। पार्वती जी को भगवान शिव उसके बारे में बताते हुए उन्हें भागवत की कथा का महत्व बता देते हैं। वह उनसे भागवत कथा सुनाने का अनुरोध करती हैं। भगवान शिव इस शर्त पर सुनाते हैं कि वह बीच में सोएंगी नहीं। इसके बाद जब भगवान शिव कथा सुनाने लगते हैं, अचानक उनकी नींद लग जाती है। परंतु शुकदेव पीछे से पूरी कथा सुन लेते हैं। वही कथा शुकदेव फिर ऋषि-मुनियों को सुनाते हैं। आचार्य श्री ओमप्रकाश शर्मा ने भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गीता के उपदेश के प्रमुख सूत्र की व्याख्या की और कहा कि यह विश्व कर्म प्रधान है। यहां व्यक्ति जो कर्म करता है, उसे उसका फल वैसा ही मिलता है। इसलिए हमें धर्म के अनुकूल कर्म करना चाहिए। तुम्हारा धर्म इस समय युद्ध करना है, तुम युद्ध करो। आचार्य जी ने उन प्रसंगों को भी बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया, जिसमें भगवान कृष्ण और भीष्म पितामह का संवाद होता है। महर्षि शिविर में सायंकाल श्रीमद्भागवत कथा के पश्चात महर्षि विद्या मंदिर भण्डारा के शिक्षकांे तथा विद्यार्थियों द्वारा आकर्षक भजनों की प्रस्तुति की गई। इसमें सुश्री गीतिका मेश्राम द्वारा गाए गए देवी भजन ने श्रोताओं का मन मोह लिया तो अनूप कुमार द्वारा प्रस्तुत किए गए शिव भजन पर उपस्थित जन समूह झूमने लगा। भजन संध्या में अवंतिका उपाध्ये, नयन घोड़ेले, अनिता वाघमारे, जयश्री जोशी एवं देवेंद्र कुमार ने मनमोहक भजन प्रस्तुत किए। ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी जी के परम् तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी के मार्गदर्शन में प्रातः कालीन सत्र में प्रतिदिन अतिरूद्राभिषेक का कार्यक्रम निरंतर चल रहा है। विश्व शांति और मानव कल्याण के उद्देश्य को लेकर महर्षि संस्थान के वैदिक पंडित प्रतिदिन प्रातः काल पाठात्मक अतिरूद्राभिषेक पूजन एवं यज्ञ कर रहे हैं, जिसमें वैदिक मंत्रों के उच्चारण से पूरा वातावरण शुद्ध हो रहा है। ओम नमः शिवाय और हर-हर महादेव की गूंज हो रही है। महर्षि शिविर में प्रतिदिन प्रातः ध्यान एवं योग का अभ्यास चल रहा है। इसके साथ ही ज्योतिष एवं आयुर्वेद के शिविर भी लगाए गए हैं, जहां लोगों को उचित सलाह दी जा रही है।
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    भगवान भी भारत में जन्म लेने को आतुर रहते हैंः आचार्य ओमप्रकाश शर्मा दिनाँक 14.05.16. उज्जैन। भारतवर्ष कर्म भूमि है। यहां सद्कर्म करने वाला स्वर्ग जाता है। दुष्कर्म करने वाला नर्क जाता है और भक्ति करने वाला गोविंद को पाता है। इसलिए भगवान भी इस भारत भूमि में जन्म लेने को आतुर रहते हैं। महर्षि शिविर में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के अंतर्गत ये उद्गार आज आचार्य श्री ओमप्रकाश शर्मा ने व्यक्त किए। सिंहस्थ के अंतर्गत महर्षि शिविर में श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के तीसरे दिन चित्रकूटधाम से आए कथाव्यास आचार्य श्री ओमप्रकाश शर्मा ने अनेक सुंदर प्रसंगों को भजनों की रसमय प्रस्तुति के साथ सुनाया। कथा में उन्होनें आज श्री शुकदेव जी महाराज द्वारा राजा परीक्षित को बताये गये विभिन्न प्रसंग सुनाये। उन्होंने राजा भरत के तीन जन्मों का प्रसंग परीक्षित को सुनाया। राजा भरत ऋषभदेव के पुत्र थे, जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है। इन्हीं भरत के नाम पर इस आर्यावर्त का नाम भारत पड़ा। भरत दूसरे जन्म में एक हिरण के रूप में जन्म लिया। तीसरे जन्म में वह एक ब्राह्मण के यहां उत्पन्न हुए, जहां उन्हें जड़ भरत का नाम दिया गया। उन्हें घर से निकाले जाने के बाद उन्हें कुछ दस्युओं ने पकड़ लिया और उनकी बलि माता पर चढ़ाने लगे। भरत दिन रात भगवान की भक्ति करते रहते थे। इसलिए जैसे ही दस्युओं ने भरत का सिर काटने के लिए तलवार उठाई, देवी माँ प्रकट हो गईं और उन्होंने तुरंत दस्युओं का नाश कर दिया। उन्होंने कहा कि भगवान अपने भक्त के लिए कहीं भी प्रकट हो जाते हैं। आचार्य श्री ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि श्री शुकदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित से कहा कि पूरे विश्व में केवल भारत ही ऐसा देश है, जिसके साथ माता लगा हुआ है। भगवान भी इस पावन भूमि पर जन्म लेने को आतुर रहते हैं। यह कर्मभूमि है। यहां कर्म के आधार पर फल मिलता है। यह पावन भूमि है, जहां एक से बढ़कर एक भक्त हुए हैं। उन भक्तों ने गोविंद को भजा और उन्हें पा लिया। उनकी महान कृपा प्राप्त कर ली। उन्होंने कहा कि, हे परीक्षित इस विश्व में सबसे बड़ा सद्कर्म भगवान की भक्ति और सत्संग है। इसे करने वाला सीधे मोक्ष को प्राप्त करता है। उन्होंने दस्यु अजामिल के प्रसंग को भी बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया, जो कभी अच्छे कर्म नहीं करता था। परंतु उसने संतों की सलाह पर अपने बेटे का नाम नारायण रखा और स्नेह के कारण बार-बार उसका नाम पुकारता रहता था। जब यमराज उसके प्राण लेने आए तो उसने अपने पुत्र नारायण को पुकारा, बार-बार नारायण का नाम लेने से भगवान उससे प्रसन्न हो गए और उन्होंने आकर अजामिल को बचा लिया। इसलिये कहा गया है कि भगवान ने दस्यु अजामिल जैसे पापी को भी तार दिया, वो सभी को तारते हैं, जो उनका नाम लेता है। शुकदेव बोले, हे परीक्षित जो व्यक्ति भगवान का नाम किसी भी रूप में लेता है, भगवान उससे प्रसन्न होते हैं। आचार्य जी ने नरसिंह अवतार एवं हिरण्यकश्यप के वध का प्रसंग भी सुनाया। महर्षि शिविर में शुक्रवार को सायंकाल श्रीमद्भागवत कथा के पश्चात महर्षि विद्या मंदिर भण्डारा के शिक्षकांे तथा विद्यार्थियों द्वारा आकर्षक भजनों की प्रस्तुति की गई। इसमें सुश्री गीतिका मेश्राम एवं अनूप कुमार द्वारा प्रस्तुत किए गए भजनों पर पंडाल में उपस्थित जन समूह झूम उठा। भजन संध्या में अवंतिका उपाध्ये, नयन घोड़ेले, अनिता वाघमारे, जयश्री जोशी एवं देवेंद्र कुमार ने भी सुंदर भजन प्रस्तुत किए। ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी जी के परम् तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी के मार्गदर्शन में विश्व शांति एवं मानव कल्याण के उद्देश्य को लेकर प्रतिदिन प्रातःकाल पाठात्मक अतिरूद्राभिषेक किया जा रहा है। इसके साथ ही यज्ञ भी किया जा रहा है। वैदिक मंत्रों के उच्चारण से पूरा वातावरण शुद्ध हो रहा है तथा ऊँ नमः शिवाय और हर-हर महादेव की गूंज हो रही है। महर्षि शिविर में प्रतिदिन प्रातः ध्यान एवं योग का अभ्यास चल रहा है। इसके साथ ही ज्योतिष एवं आयुर्वेद के शिविर भी लगाए गए हैं, जहां लोगों को उचित सलाह दी जा रही है।
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    महर्षि शिविर में श्रीमद्भागवत कथामृत प्रवाह भगवान तो सदैव भक्त के साथ होते हैं दिनाँक 15.05.16. उज्जैन। भगवान को भक्तवत्सल कहा जाता है। वह सदैव ही भक्त के साथ होते हैं। भक्त उन्हें सबसे प्रिय होता है, भक्त पर जब भी कोई विपत्ति आती है, भगवान वहां पहुंचकर उसकी सहायता करते हैं। उसकी पीड़ा दूर करते हैं। ये उद्गार चित्रकूट धाम से पधारे आचार्य श्री ओमप्रकाश शर्मा ने श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के चैथे दिन व्यक्त किए। सिंहस्थ के अंतर्गत महर्षि शिविर में श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के अंतर्गत आज कथाव्यास आचार्य श्री ओमप्रकाश शर्मा ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं को अत्यंत सुंदर प्रसंगों और भजनों की रसमय प्रस्तुति के माध्यम से प्रस्तुत किया। श्री शुकदेव जी महाराज राजा परीक्षित को भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं के बारे में सुनाते-सुनाते स्वयं भी असीम आनंद का अनुभव करते हैं। वे बीच-बीच में भगवान की लीलाओं का अर्थ भी सुंदर ढंग से बताते हैं। आचार्यजी ने श्रीकृष्ण द्वारा पूतना को सद्गति प्रदान करने के प्रसंग को सुनाते हुए कहा कि पूतना राक्षसी थी, परंतु भगवान ने उसका दूध पिया, तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसी प्रकार भगवान ने अपने बालपन में ही अनेक राक्षसों को सद्गति प्रदान की। उन्होंने कहा कि ब्रजधाम के लोगों ने कितने पुण्य किए होंगे कि उन्हें भगवान कृष्ण के प्रतिदिन दर्शन हो रहे हैं। ब्रजवासियों के साथ वह खेलते हैं, गायें चराते हैं। कभी बच्चों के साथ यमुना के तीर पर गंेंद खेलने जाते हैं तो वहां बहाने से गेंद यमुना में फेक देते हैं। निकालने जाते है। तो सर्प कालीदह के मद का मर्दन करते हैं और उसके फन पर नृत्य करते हुए बाहर निकलते हैं। इसके बाद कालीदह वहां से सदा के लिए चला जाता है। आचार्यजी ने भगवान कृष्ण द्वारा इंद्रदेव के घमंड को भी तोड़ने का प्रसंग सुनाया। जब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से कहा जो वर्षा होती है, वह गिरिराज गोवर्धन के कारण होती है, हमें उसकी पूजा करनी चाहिए, इंद्र देव की नहीं। इस पर ब्रजवासियों ने गोवर्धन की पूजा की तो इंद्र देव नाराज हो गए, उन्होंने ब्रज में भारी वर्षा करना प्रारम्भ कर दिया। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को एक उंगली पर उठाकर पूरे ब्रजवासियों की उससे रक्षा की। इंद्र देव को तब भगवान की लीला समझ आई और उसका घमंड चूर-चूर हो गया। आचार्यश्री ओमप्रकाश शर्मा ने बालकृष्ण के गोपियों के साथ रास और महारास के प्रसंग भी सुनाए। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने ब्रज के अपने भक्तों की बार-बार रक्षा की, उनके साथ लीलाएं कर उन्हें सद्गति प्रदान की। महर्षि शिविर में सायंकाल श्रीमद्भागवत कथा के पश्चात महर्षि विद्या मंदिर बालाघाट से आए दल ने भजनों की आकर्षक प्रस्तुति दी। विद्यामंदिर के नीतेश मिश्रा, श्रुति बिसेन, सौम्य बख्शी, सृष्टि बावनकर, टिसा उदासी तथा अपेक्षा कुंडले ने सुंदर-सुंदर भजनों से भक्तिरस बिखेरा और उनका साथ दिया उनके शिक्षकों सर्वश्री ललित कानतोड़े, पुनीत शर्मा तथा अमित पाण्डे ने। ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी जी के परम् तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी के मार्गदर्शन में विश्व शांति एवं मानव कल्याण के उद्देश्य को लेकर प्रतिदिन प्रातःकाल पाठात्मक अतिरूद्राभिषेक किया जा रहा है। इसके साथ ही यज्ञ भी किया जा रहा है। महर्षि शिविर में चल रहे वैदिक मंत्रों के उच्चारण से सिंहस्थ क्षेत्र का वातावरण शुद्ध हो रहा है, साथ ही जय महाकाल, जय-जय शिवशंकर गंुजायमान हो रहे हैं। शिविर में प्रतिदिन प्रातः भावातीत ध्यान एवं योग का अभ्यास कराया रहा है। इसके साथ ही लोगों को निःशुल्क ज्योतिषीय सलाह ज्योतिर्विद पंडित विजय दुबे द्वारा दी जा रही है।
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  • सिंहस्थ महाकुम्भ उज्जैन 2016

    2016

    भावातीत ध्यान अनेक समस्याओं का समाधन: ब्रह्मचारी गिरीश जी दिनाँक 17.05.16. महर्षि महेश योगी जी प्रणीत भावातीत ध्यान का नियमित अभ्यास व्यक्ति और समाज की अनेकानेक समस्याओं का समाधन प्रस्तुत करता है। भावातीत ध्यान की प्रक्रिया अत्यन्त सरल, सहज, स्वाभाविक और प्रयासरहित है। इसे किसी भी धर्म, आस्था, विश्वास, विचारधरा, पारिवारिक पृष्ठभूमि, जाति, लिंग के व्यक्ति एक बार सीखकर जीवनभर अभ्यास कर सकते हैं। भावातीत ध्यान आराम से कहीं भी बैठकर किया जा सकता है। विश्व भर में 700 से अध्कि वैज्ञानिक अनुसंधनों द्वारा प्रमाणित यह एक मात्रा ध्यान की पद्धति है जिसे 100 से भी अध्कि देशों के नागरिकों ने सीखा है और वे चेतना की उच्च अवस्थाओं का अनुभव करके अनेकानेक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। इसका व्यक्तिगत अभ्यास व्यक्ति व उसके परिवार के लिये और समूह में अभ्यास पूरे समाज के लिये लाभ दायक है यह विचार ब्रह्मचारी गिरीश जी ने आज महर्षि शिविर में अपने सम्बोध्न में व्यक्त किये। उन्होंने बताया कि इसके नियमित अभ्यास से मनुष्य के जीवन के प्रत्येक क्षेत्रा में पूर्णता आती है, बुद्धि तीक्ष्ण और समझदारी गहरी होती है, बहुमुखी समग्र चिन्तन करने की शक्ति बढ़ती है, स्मरण शक्ति बढ़ती है। संबंध्ति व्यक्ति की सहनशीलता बढ़ती है, सहयोग की भावना बढ़ती है, सहिष्णुता बढ़ती है। शारीरिक व मानसिक क्षमताओं का पूर्ण जागरण और विकास होता है। सुख शाँति और असीम आनन्द की प्राप्ति होती है। इस प्रकार भावातीत ध्यान परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी का सम्पूर्ण मानवता को एक अनुपम उपहार है। सायंकाल सिंहस्थ महाकुम्भ में महर्षि शिविर के दिव्य प्रांगण में महर्षि महेश योगी जी के प्रिय एवं तपोनिष्ठ साधक शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी के सान्निध्य में सुप्रसिद्ध कथाव्यास आचार्य पं. निलिम्प त्रिपाठी जी द्वारा श्रीमद् देवी भागवत महापुराण कथामृत का संगीत लहरियों के मध्य प्रवाह प्रारम्भ किया गया। उन्होंने बताया कि देवी माँ कल्याणकारी हैं। उनकी दृष्टि वात्सल्यमयी है, सभी कष्टों का निवारण करने वाली है, दुःखों के बीच सांत्वना प्रदान करने वाली है। श्री सुखदेव जी महाराज द्वारा महर्षि व्यास जी को सुनाई गई श्रीमद् देवी भागवत पुराण की कथा का बारम्बार श्रवण करने से ज्ञान और चेतना दोनों की प्राप्ति संभव हो जाती है। इसका श्रवण मात्र ही मनुष्य में स्थित अल्पता के बोध को समाप्त कर देता है और उसे विचार और कर्म के उस विशाल क्षेत्र में प्रवेश कराकर उसे सदैव के लिये मानव कल्याण हेतु निबद्ध कर देता है। उसकी भाषा अलंकृत हो जाती है, उसमें से सद्शब्द ही निकलते हैं और अपशब्द सदैव के लिये विलोपित हो जाते हैं। उन्होंने महर्षि व्यास जी के द्वारा चार वेदों एवं उनसे निकले उपवेद, वेदांग, संहिता आदि की रचना की अत्यन्त रोचकपूर्ण ढंग से व्याख्या की, जिससे संपूर्ण श्रोतागण रोमांचित हो गये। रात्रि में महर्षि विद्या मंदिर नोएडा की विख्यात शास्त्रीय संगीत व भजन गायिका श्रीमती अनुराधा अगस्ती के नेतृत्व में विद्यार्थियों ने भगवत् भजनों से भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके साथ ही देश के जाने माने तबला व संतूर वादक डाॅ. श्रीकान्त अगस्ती ने संगत की। जब विद्यार्थियों ने भजमन नारायण नारायण नारायण..... का संगीत लहरियों के बीच उद्घोष किया तब समस्त श्रोतागण झूम उठे। महर्षि शिविर में विश्व शांति एवं सम्पूर्ण मानव कल्याण के उद्देश्य को लेकर 151 वैदिक पंडितों द्वारा प्रातःकाल पाठात्मक अतिरूद्राभिषेक किया गया। इसमें हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर पुण्य लाभ प्राप्त किया। इसके साथ ही लोगों को निःशुल्क ज्योतिषीय सलाह प्रसिद्ध ज्योतिष्विद पंडित विजय द्विवेदी के द्वारा दी जा रही है। शिविर में प्रतिदिन प्रातः योग, प्राणायाम और भावातीत ध्यान का अभ्यास कराया जा रहा है।
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  • सिंहस्थ महाकुम्भ उज्जैन 2016

    2016

    भावातीत ध्यान अनेक समस्याओं का समाधन: ब्रह्मचारी गिरीश जी दिनाँक 17.05.16. महर्षि महेश योगी जी प्रणीत भावातीत ध्यान का नियमित अभ्यास व्यक्ति और समाज की अनेकानेक समस्याओं का समाधन प्रस्तुत करता है। भावातीत ध्यान की प्रक्रिया अत्यन्त सरल, सहज, स्वाभाविक और प्रयासरहित है। इसे किसी भी धर्म, आस्था, विश्वास, विचारधरा, पारिवारिक पृष्ठभूमि, जाति, लिंग के व्यक्ति एक बार सीखकर जीवनभर अभ्यास कर सकते हैं। भावातीत ध्यान आराम से कहीं भी बैठकर किया जा सकता है। विश्व भर में 700 से अध्कि वैज्ञानिक अनुसंधनों द्वारा प्रमाणित यह एक मात्रा ध्यान की पद्धति है जिसे 100 से भी अध्कि देशों के नागरिकों ने सीखा है और वे चेतना की उच्च अवस्थाओं का अनुभव करके अनेकानेक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। इसका व्यक्तिगत अभ्यास व्यक्ति व उसके परिवार के लिये और समूह में अभ्यास पूरे समाज के लिये लाभ दायक है यह विचार ब्रह्मचारी गिरीश जी ने आज महर्षि शिविर में अपने सम्बोध्न में व्यक्त किये। उन्होंने बताया कि इसके नियमित अभ्यास से मनुष्य के जीवन के प्रत्येक क्षेत्रा में पूर्णता आती है, बुद्धि तीक्ष्ण और समझदारी गहरी होती है, बहुमुखी समग्र चिन्तन करने की शक्ति बढ़ती है, स्मरण शक्ति बढ़ती है। संबंध्ति व्यक्ति की सहनशीलता बढ़ती है, सहयोग की भावना बढ़ती है, सहिष्णुता बढ़ती है। शारीरिक व मानसिक क्षमताओं का पूर्ण जागरण और विकास होता है। सुख शाँति और असीम आनन्द की प्राप्ति होती है। इस प्रकार भावातीत ध्यान परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी का सम्पूर्ण मानवता को एक अनुपम उपहार है। सायंकाल सिंहस्थ महाकुम्भ में महर्षि शिविर के दिव्य प्रांगण में महर्षि महेश योगी जी के प्रिय एवं तपोनिष्ठ साधक शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी के सान्निध्य में सुप्रसिद्ध कथाव्यास आचार्य पं. निलिम्प त्रिपाठी जी द्वारा श्रीमद् देवी भागवत महापुराण कथामृत का संगीत लहरियों के मध्य प्रवाह प्रारम्भ किया गया। उन्होंने बताया कि देवी माँ कल्याणकारी हैं। उनकी दृष्टि वात्सल्यमयी है, सभी कष्टों का निवारण करने वाली है, दुःखों के बीच सांत्वना प्रदान करने वाली है। श्री सुखदेव जी महाराज द्वारा महर्षि व्यास जी को सुनाई गई श्रीमद् देवी भागवत पुराण की कथा का बारम्बार श्रवण करने से ज्ञान और चेतना दोनों की प्राप्ति संभव हो जाती है। इसका श्रवण मात्र ही मनुष्य में स्थित अल्पता के बोध को समाप्त कर देता है और उसे विचार और कर्म के उस विशाल क्षेत्र में प्रवेश कराकर उसे सदैव के लिये मानव कल्याण हेतु निबद्ध कर देता है। उसकी भाषा अलंकृत हो जाती है, उसमें से सद्शब्द ही निकलते हैं और अपशब्द सदैव के लिये विलोपित हो जाते हैं। उन्होंने महर्षि व्यास जी के द्वारा चार वेदों एवं उनसे निकले उपवेद, वेदांग, संहिता आदि की रचना की अत्यन्त रोचकपूर्ण ढंग से व्याख्या की, जिससे संपूर्ण श्रोतागण रोमांचित हो गये। रात्रि में महर्षि विद्या मंदिर नोएडा की विख्यात शास्त्रीय संगीत व भजन गायिका श्रीमती अनुराधा अगस्ती के नेतृत्व में विद्यार्थियों ने भगवत् भजनों से भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके साथ ही देश के जाने माने तबला व संतूर वादक डाॅ. श्रीकान्त अगस्ती ने संगत की। जब विद्यार्थियों ने भजमन नारायण नारायण नारायण..... का संगीत लहरियों के बीच उद्घोष किया तब समस्त श्रोतागण झूम उठे। महर्षि शिविर में विश्व शांति एवं सम्पूर्ण मानव कल्याण के उद्देश्य को लेकर 151 वैदिक पंडितों द्वारा प्रातःकाल पाठात्मक अतिरूद्राभिषेक किया गया। इसमें हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर पुण्य लाभ प्राप्त किया। इसके साथ ही लोगों को निःशुल्क ज्योतिषीय सलाह प्रसिद्ध ज्योतिष्विद पंडित विजय द्विवेदी के द्वारा दी जा रही है। शिविर में प्रतिदिन प्रातः योग, प्राणायाम और भावातीत ध्यान का अभ्यास कराया जा रहा है।
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  • 2016

    On the occasion of International Yoga Day celebration at Bhopal, all present Yog, Transcendental Meditation and Siddhi Administrator were honoured
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  • Pundits of Maharishi Ved Vigyan Vishwa Vidyapeetham, Bhopal

    2016

    Group picture of Maharishi Vedic Pundits of Maharishi Ved Vigyan Vishwa Vidyapeetham at Bhopal with Honourable Brahmachari Girish Ji after participation in International Yog Day Celebration
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  • Hon'ble Shri Babulal Gaur Ji, Ex-Home Minister of Madhya Pradesh Government.

    2016

    Hon'ble Shri Babulal Gaur Ji, Ex-Home Minister of Madhya Pradesh Government has visited Shri Sahasrachandi Mahayagya Mandap, performed Aarti and offered flowers to Maa Durga.
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